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श्री दुर्गा चालीसा

श्री  दुर्गा चालीसा की महत्वपूर्ण जानकारी और

 माँ दुर्गा चालीसा

माँ दुर्गा चालीसा एक हिंदू धार्मिक प्रार्थना समान है, जो माँ दुर्गा को समर्पित है और यह प्राचीन है। हिंदू समुदाय में यह चालीसा पुरानी है और माँ दुर्गा के साहस-शक्ति को दर्शाती है। इस चालीसा की प्रत्येक चौपाई अलग-अलग अर्थ और महत्व रखती है। जिसे श्रद्धापूर्वक पढ़ने पर माँ दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

श्री दुर्गा चालीसा में माँ दुर्गा की पूरी तरह से महिमा बोली गई है। चालीसा माँ के नौ रूपों की प्रशंसा करती है। जिसमे चंडी, भद्रकाली, सिंहवाहिनी, ब्रह्मचारिणी, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, महागौरी और सिद्धिदात्री शामिल है। इन नौ रूपों में प्रत्येक माँ की शक्ति का चित्रण है।

श्री दुर्गा चालीसा का नित्य पठन मन को शुद्ध करता है और बुराइयों को दूर भगाता है। यह चालीसा भक्ति और शक्ति का प्रतीक है, जो माँ दुर्गा की शक्ति का अनुभव कराती है। श्रद्धापूर्वक पढ़ने से व्यक्ति को सकारात्मक विचार आते हैं और उसे नए शिखरों पर पहुंचने की प्रेरणा मिलती है।

इस चालीसा को पढ़ने से माँ दुर्गा ध्यान में आकर भक्त को सुख-शांति देती हैं और उसे सभी कष्ट से मुक्त करती हैं। इस चालीसा को नियमित रूप से पढ़ने पर व्यक्ति को अधिक आत्मविश्वास और बल मिलता है। जो उसके जीवन में सुख और सफलता बढ़ाता है।

श्री दुर्गा चालीसा पूजा पाठ की विधि

सही विधि और नियम के साथ पूजा करने पर आपकी भक्ति जरूर माँ दुर्गा तक पहुंचेगी।

• पूजा के दिन सुबह जल्दी उठ कर स्नान कर लीजिये।

• फिर साफ़ एंव सरल कपडे पहने और तैयारी शुरू करे।

• एक लकड़ी की चौकी पर लाल रंग का कपडा बिछाये।

• उस पर श्री दुर्गा माँ की प्रतिमा स्थापित कर दीजिये।

• प्रतिमा के सामने दिया, धुप और अगरबत्ती जलाये।

• आगे सुंदर फूल- हार माँ को चढ़ाये और प्रार्थना करे।

• फिर श्री दुर्गा चालीसा का पाठ पढ़ना शुरू कर दीजिये।

पूजा के दौरान घर के सभी सदस्य इसी स्थान पर रहेंगे तो अच्छा है। जिससे माँ की अच्छी नजर और आशीर्वाद उन पर बना रहे।

श्री दुर्गा चालीसा नित्य पढ़ने पर 5 मुख्य फायदे अवश्य मिलते है।

• मन की शांति और दिमागी ऊर्जा बढ़ती है।

• माँ दुर्गा द्वारा संघर्ष करने की क्षमता मिलती है।

• भक्तो का मन भयमुक्त होने लगता है।

• शरीर की स्वास्थ्य स्थिति में सुधार आता है।

• जीवन में आ रहे तमाम दुःख कम होते है।

॥ श्री दुर्गा चालीसा ॥

 

नमो नमो दुर्गे सुख करनी।

नमो नमो अंबे दुःख हरनी॥

 

निरंकार है ज्योति तुम्हारी।

तिहूं लोक फैली उजियारी॥

 

शशि ललाट मुख महाविशाला।

नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥

 

रूप मातु को अधिक सुहावे।

दरश करत जन अति सुख पावे॥

 

तुम संसार शक्ति लै कीना।

पालन हेतु अन्न धन दीना॥

 

अन्नपूर्णा हुई जग पाला।

तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥

 

प्रलयकाल सब नाशन हारी।

तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥

 

शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।

ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥

 

रूप सरस्वती को तुम धारा।

दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥

 

धरयो रूप नरसिंह को अम्बा।

परगट भई फाड़कर खम्बा॥

 

रक्षा करि प्रह्लाद बचायो।

हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥

 

लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं।

श्री नारायण अंग समाहीं॥

 

क्षीरसिन्धु में करत विलासा।

दयासिन्धु दीजै मन आसा॥

 

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।

महिमा अमित न जात बखानी॥

 

मातंगी अरु धूमावति माता।

भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥

 

श्री भैरव तारा जग तारिणी।

छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥

 

केहरि वाहन सोह भवानी।

लांगुर वीर चलत अगवानी॥

 

कर में खप्पर खड्ग विराजै।

जाको देख काल डर भाजै॥

 

सोहै अस्त्र और त्रिशूला।

जाते उठत शत्रु हिय शूला॥

 

नगरकोट में तुम्हीं विराजत।

तिहुँलोक में डंका बाजत॥

 

शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे।

रक्तन बीज शंखन संहारे॥

 

महिषासुर नृप अति अभिमानी।

जेहि अघ भार मही अकुलानी॥

 

रूप कराल कालिका धारा।

सेन सहित तुम तिहि संहारा॥

 

परी गाढ़ सन्तन पर जब जब।

भई सहाय मातु तुम तब तब॥

 

आभा पुरी अरु बासव लोका।

तब महिमा सब रहें अशोका॥

 

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।

तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥

 

प्रेम भक्ति से जो यश गावें।

दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥

 

ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई।

जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥

 

जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।

योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥

 

शंकर आचारज तप कीनो।

काम क्रोध जीति सब लीनो॥

 

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।

काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥

 

शक्ति रूप का मरम न पायो।

शक्ति गई तब मन पछितायो॥

 

शरणागत हुई कीर्ति बखानी।

जय जय जय जगदम्ब भवानी॥

 

भई प्रसन्न आदि जगदम्बा।

दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥

 

मोको मातु कष्ट अति घेरो।

तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥

 

आशा तृष्णा निपट सतावें।

रिपु मुरख मोही डरपावे॥

 

शत्रु नाश कीजै महारानी।

सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥

 

करो कृपा हे मातु दयाला।

ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला।

 

जब लगि जियऊं दया फल पाऊं।

तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं॥

 

श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै।

सब सुख भोग परमपद पावै॥

 

देवीदास शरण निज जानी।

करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥

 

॥ इति श्री दुर्गा चालीसा सम्पूर्ण ॥

 

अनिल निश्छल

 

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