भगवन अनन्त का लक्षमण अवतार का चरित्र वर्णन
महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखित रामायण में भगवान श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम बताया गया है। श्रीराम भगवान विष्णु के सातवें अवतार थे। स्वाभाविक है कि श्रीराम का चरित्र भी भगवान के समान आदर्श पुरुष और एक कोमल हृदय वाले इंसान जैसा था। लेकिन श्रीराम के छोटे भाई लक्ष्मण जोकि शेषनाग के अवतार के रूप में श्रीराम की लीला में उनका साथ देने के लिए आये थे।लक्षमण जी अपने भाई राम की तरह विनम्र न होकर थोड़े उग्र स्वाभाव तथा सतर्क विचार वाले इंसान के रूप में थे।
(लक्षमण का चरित्र वर्णनलक्ष्मण जी)
लक्ष्मण जी महाराजा दशरथ की पत्नी सुमित्रा के ज्येष्ठ पुत्र थे तथा उनका छोटा भाई शत्रुघन था। जबकि श्री राम माता कौशल्या के एकलौते पुत्र थे जोकि सभी भाइयो में सबसे बड़े थे। भारत देवी केकई के पुत्र थे जो श्रीराम से छोटे थे लेकिन लक्षमण और शत्रुघ्न से बड़े थे। लक्षमण जी बालपन से ही श्रीराम के अधिक चहिते रहे थे। जब भी सभी भाइयो में प्रतियोगिता होती थी तो लक्ष्मण जी हमेशा श्रीराम की तरफ बोलते थे।
(शेषनाग के अवतार लक्षमण )
जैसा की रामायण में बताया गया है की लक्षमण जी शेषनाग के अवतार थे अतः लक्षमण जी की अपार शक्ति के बारे में जानने के लिए पहले हमें शेषनाग की शक्ति के बारे में जानना होगा। भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेषनाग के ऊपर विश्राम करते है। इसलिए जो शेषनाग स्वयं सृष्टि के पालनहार श्री नारायण का भार सह सकते है वह निश्चित ही अपर बलशाली है। पुराणों में इस बात का भी वर्णन मिलता है की शेषनाग पृथ्वी को अपने फन पर धारण करते है।
लक्ष्मण जी की शक्ति
लक्ष्मण जी की शक्ति का अनुमान इस बात से भी लगाया जा सकता है की सीता हरण से पहले लक्ष्मण जी ने कुटिया के आगे अपने तीर से एक रेखा खींच दी थी जिसे लक्ष्मण रेखा के नाम से जाना जाता है। तीनो लोको का विजेता और भगवान शिव का परम भक्त होते हुए भी रावण लक्ष्मण जी के द्वारा खींची गई एक साधारण सी रेखा को नहीं कर पाया था। दूसरी तरफ युद्ध के समय अधिकतर समय युद्ध लक्ष्मण जी ने ही किया था जिसमे उन्होंने लंका के सबसे महान और विकट योद्धा इंद्रजीत (मेघनाद ) तथा अतिकाय जिसने एक बार भगवान शिव के त्रिशूल की निष्प्रभाव किया था उनको हराया था। युद्ध में जब लक्ष्मण जी मूर्छित हो गए थे तब इंद्रजीत उन्हें उठा भी नहीं पाया था। l
चौदह वर्ष तक भूखे रहे।
लक्ष्मण जी ने वनवास के 14 वर्षो में आहार का एक भी निवाला नहीं खाया था। क्योंकि जब भी लक्ष्मण फल लेकर आते थे तो श्रीराम उन्हें तीन हिस्सों में बाँट देते थे। लेकिन लक्ष्मण जी अपने हिस्से के फलो को खाने के बजाय सुरक्षित रख लेते थे। उन्हें लगता था की श्रीराम ने उन्हें फल खाने के लिए कभी आज्ञा ही नहीं दी इसलिए उन्होंने 14 वर्ष तक कुछ भी नहीं खाया था। जिस टोकरी में लक्ष्मण जी अपने हिस्से के फलो को रखते थे उस टोकरी को महावीर हनुमान जी भी नहीं उठा पाए थे।
चौदह वर्ष तक सोये नहीं
वनवास में श्रीराम के साथ जाते हुए लक्ष्मण जी की माता सुमित्रा ने उन्हें यह आज्ञा दी थी की अपने भाई और भाभी की सेवा करना। जब वे सो जाए तो पहरा देना और जगे हो तो उनकी सेवा करना। अपनी माता की इस आज्ञा को मानते हुए लक्ष्मण जी वनवास के 14 वर्षो तक नहीं सोये थे। जब श्रीराम और माता सीता कुटिया में होते तो वे पहरा देते और जब वे बहार आ जाते तो उनकी सेवा में लग जाते।
चौदह वर्ष तक ब्रह्मचर्य का पालन किया
14 वर्ष तक लक्ष्मण जी ने ब्रह्चर्य व्रत का पालन किया तथा इन चौदह वर्षो में उन्होंने किसी भी स्त्री का चेहरा तक नहीं देखा था। वह जब भी माता सीता से बात करते थे तो उनकी नज़र उनके चरणों पर रहती थी।
कई वर्षो तक बिना खाये ,बिना सोये तथा ब्रह्मचारी रहने के इस त्याग के कारण ही लक्ष्मण जी मेघनाद (इंद्रजीत ) का वध कर पाए थे। अन्यथा कोई भी इंदरजीत को पराजित नहीं कर सकता था।
इन सभी बातो की पुष्टि महर्षि तब हुई जब महर्षि अगस्त्य श्रीराम की सभा में आए। राम ने लंका के युद्ध की चर्चा करते हुए उनसे कहा, ‘मैंने रावण, कुंभकर्ण को रणभूमि में मार गिराया था तथा लक्ष्मण ने इंद्रजीत और अतिकाय का वध किया था। तब महर्षि ने उन्हें समझाया, ‘हे राम, इंद्रजीत(मेघनाद ) लंका का सबसे बड़ा
वीर था। वह इंद्र को बांध कर लंका ले आया था। ब्रह्माजी आकर इंद्र को मांग ले गए। इंद्रजीत बादलों की ओट में रहकर युद्ध करता था। लक्ष्मण ने उसका वध किया तो लक्ष्मणजी के समान त्रिभुवन में कोई वीर नहीं है।
महर्षि अगस्त्य श्रीराम को इंद्रजीत की मृत्यु का रहस्य समझाया की इंद्रजीत को वरदान था कि जो व्यक्ति चौदह वर्ष तक नहीं सोया हो, न ही इन वर्षों में किसी स्त्री का मुख देखा हो, इन वर्षों में भोजन नहीं किया हो ऐसा व्यक्ति ही इंद्रजीत को मार सकता था।
सनातन महाकाव्यों में रामायण सबसे बड़ा महाकाव्य है। इस महाकाव्य में तीन प्रमुख पात्र है राम स्वयं विष्णु के अवतार, लक्ष्मण राम के छोटे भ्राता और सीता राम की पत्नि। आप सबने राम और सीता के बारे में काफी कुछ जाना होगा लेकिन हम आज आपको लक्ष्मण के कुछ ऐसे अनजाने रहस्यों से रूबरू करायेंगे जिन्हें जानकर आप धन्य हो जायेगे।
लक्ष्मण एक ऐसा योद्धा जो अजीत था, जिसे मृत्यु मंजूर थी पर हार नहीं। पूरी दुनिया में सनातन महाकाव्य रामायण बेहद प्रसिद्ध है। श्री लक्ष्मण के बिना राम का व्याख्यान नहीं किया जा सकता क्योंकि लक्ष्मण एक अत्यंत महत्वपूर्ण चरित्र भी हैं। वह भगवान राम के अत्यधिक भक्तिपूर्ण और अविभाज्य (जिन्हें अलग नहीं किया जा सकता) हैं।
लक्ष्मण की निष्ठा, ईमानदारी के साथ-साथ उनके छोटे स्वभाव के बारे में सभी जानते हैं और उनका न होना भगवान के लिए एक हाथ खोने के बराबर होगा। लक्ष्मण राम के लिए और दुनिया के लिए कितने महत्वपूर्ण थे इसकी कल्पना करना ही व्यर्थ है क्योंकि बिना लक्ष्मण के रामायण ही सम्भव नहीं थी। बिना लक्ष्मण के श्री राम युद्ध नहीं जीत सकते थे। लक्ष्मण वह महान गुणों वाला किरदार और एक महान चरित्र था जिसे लोग कम ही जानते है।(लक्ष्मण : के 10 अनजाने रहस्य)
लक्ष्मण ने चौदह वर्ष तक किसी महिला का चेहरा क्यों नहीं देखा.
क्षत्रियधर्म में पुरुष या महिला अपने पति या पत्नी के अलावा किसी को नहीं देख सकते और लक्ष्मण स्वयं सबसे सज्जन व्यक्ति भी थे उन्होंने चौदह वर्ष तक किसी नारी का चेहरा नहीं देखा था। वह बनवास के समय अपने भाई राम और सीता के साथ रहे तब भी उन्होंने अपनी ही भाभी का चेहरा नहीं देखा था। उन्होंने सिर्फ उनके चरणों को देखा था जब वह उनके पैर छूते थे तब।सीता के सामने उनकी गर्दन हमेशा नीचे ही रहती थी।
इस बात की परिपूर्ण पुष्टि तब हुयी जब रावण सीता माता को लंका ले जा रहा था। तब जब उन्होंने उनकी खोज की तो सुग्रीव ने उन्हें माता सीता के कई आभुषण दिखाये जिसमें से लक्ष्मण सिर्फ माता सीता की पायल की ही पहचान कर सके क्योंकि उन्होंने सिर्फ उनके चरण देखे थे। पायल को पहचानते हुए लक्ष्मण ने कहा कि उन्होंने पूजा में उनके पैरों पर सिर रखते हुए पायल को देखा था। वह किसी अन्य आभूषण को पहचानने में सक्षम नहीं थे क्योंकि उसने कभी भी उन्हें करीब से देखने का अनुमान नहीं लगाया था।
लक्ष्मण को “गुडाकेश” क्यों कहते हैं.
गुडाकेश” अर्थात नींद को पराजित कर देने वाला। जी हां लक्ष्मण गुडाकेश थे। उन्होंने नींद की देवी “निंदा देवी” को प्रसन्न करके यह वरदान लिया था। दरअसल इस वरदान के पीछे भी एक बड़ी कहानी है।
जब राम लक्ष्मण और सीता चौदह वर्ष के बनवास को गए तब लक्ष्मण ने एक प्रण लिया था कि वह चौदह वर्ष तक सोयेगे नहीं क्योंकि उन्हें अपने भैया राम और भाभी सीता की रक्षा करनी थी। और उन्होंने ऐसा ही किया वह लगातार चौदह वर्षो तक बिना नींद लिए निस्वार्थ और सच्ची निष्ठा से प्रभु राम की सुरक्षा करते रहे। उनका यह तप देखकर निद्रा देवी प्रसन्न होगी और खुश होकर उन्होंने लक्ष्मण को “गुडाकेश” बना दिया। यानी कि एक ऐसा व्यक्ति नींद को हरा सकता है वह नींद से परे है।
लक्ष्मण गुडाकेश थे इसीलिए उन्हें रावण के विरुद्ध युद्ध लड़ने में काफी मदद मिली । खासकर मेघनाद को हराने के लिए लक्ष्मण ही सटीक थे क्योंकि वह सिर्फ उसी व्यक्ति द्वारा मारा जा सकता था जो गुडाकेश है यानी कि वह सिर्फ लक्ष्मण से ही मारा जा सकता था। चुकी लक्ष्मण ही एक ऐसे इंसान थे जिन्होंने नींद पर विजय प्राप्त कर ली थी।
लक्ष्मण बलराम के अवतार
लक्ष्मण ने एक बार यह बात कही थी कि चूंकि वह राम से छोटे हैं, इसलिए उनके अपने बड़े भाई राम की प्रत्येक आज्ञा का पालन उन्हें करना ही था। यही वजह है कि लक्ष्मण को भी बड़े भाई बनने की इच्छा तीव्र थी और अगले अवतार में उनकी यह इच्छा पूरी हो गयी । अगले अवतार में वह शेष नाग के अवतार बलराम बने जबकि भगवान विष्णु छोटे भगवान कृष्ण बने ।
यदि आपने भगवान विष्णु की सबसे प्रचलित तस्वीर या मूर्ति देखी होगी तो आप देखते है कि वह शेष नाग के ऊपर लेटे है। शेष नाग साक्षात लक्ष्मण का अवतार है। इसीलिए उनके हर अवतार में वह उनके साथ थे। इसीलिए भगवान विष्णु जब राम के रूप मे पैदा हुए तो वहां उन्हें लक्ष्मण मिले उसी प्रकार जब कृष्ण के रूप में आए तो बड़े भाई के रूप में बलराम मिले।
शेषनाग के अवतार
लक्ष्मण जी शेष नाग के अवतार है जो पूरे ब्रम्हांड के ग्रहो को अपने सर पर रखे हुए हैं। यह वही शेष नाग के अवतार है जिस नाग पर भगवान विष्णु क्षीरसागर में विश्राम करते हैं, जो कि दूध का सागर है। शेष नाग सभी नागों के राजा हैं। शेषनाग और भगवान विष्णु अविभाज्य हैं।
हमने अक्सर भगवान विष्णु को शेषनाग पर आराम फरमाते हुए चित्रित देखा है, जब भगवान विष्णु राम के रूप में पृथ्वी पर उतरे, तो शेषंग उनके साथ लक्ष्मण के रूप में आए। यही कारण है कि हम ‘ताटिक’ (मिथिला को नष्ट करने के लिए रावण द्वारा भेजा गया एक नाग) जब लक्ष्मण को देखता है तो भागने लगता है।
इंद्रजीत को मारने के लिए हर शर्त पर परिपूर्ण थे लक्ष्मण
मेघनाद कोई साधारण असुर नहीं था वह मृत्युलोक के साथ ही साथ इंद्र लोक को भी विजय कर चुका था। युद्ध के बाद, जब ऋषि अगस्त्य अयोध्या आए तो उन्होंने कुछ ऐसे सत्य खोले जो अविश्वसनीय थे । ऋषि ने कहा, मेघनाद कोई साधारण असुर नहीं था, वह इंद्रलोक का विजेता था। उसके पास तपस्या से प्राप्त किए गए कई बड़े विनाशक हथियार थे उसके पास एक त्रिमूर्ति हथियार था जिसमें – ब्रह्मास्त्र, नारायणास्त्र और पाशुपतास्त्र के तीन परम हथियार शनि शामिल थे।
इस सब के बावजूद भी वह सिर्फ ऐसे व्यक्ति द्वारा मारा जा सकता था जो जिसने कम से कम वह 14 साल तक किसी महिला का चेहरा नहीं देखा हो या किसी महिला के साथ शरीरिक संबन्ध बनाए हो ना ही उसने कोई भोजन किया हो। इतनी कठिन स्थिति को पार करने के बाद मेघनाद का अंत हो सकता था।
बाद में लक्ष्मण ने समझाया कि वह बनवास के दौरान वह पूरे 14 साल से भी ज्यादा वर्षो तक सोये नहीं ना ही उन्होंने किसी महिला का चेहरा देखा था। हालांकि राम उन्हें खाना देते थे पर उन्होंने ये नहीं कहा कि खाना खाओ इसलिए उन्होंने खाना भी नहीं खाया था।
लक्ष्मण ने बताया वह सिर्फ उतना ही करते थे जितना उनके बड़े भाई बोलते थे। जबकि वह बनवास में सीता के साथ रहे फिर भी उन्होंने सीता का चेहरा नहीं देखा उन्होंने सिर्फ उनके चरण ही देखे थे। इस प्रकार लक्ष्मण उन सभी शर्तों पर खरे उतरे जितनी मेघनाद को मारने के लिए पर्याप्त थी और उन्होंने इंद्रजीत को मार डाला।
लक्ष्मण और राम का प्रेम अद्वितीय
जब राजा दशरथ द्वारा राम को वनवास दिए जाने पर राम ने सबसे पहले अपनी पत्नी सीता को समझाया था। राम अपनी ही पत्नी को समझाने की कोशिश करते हैं और उससे कहते हैं कि अगर वह चाहें तो वह अपने ससुराल वालों के साथ राज्य में वापस पूरी सुख सुविधाओं के साथ रह सकती है।
लेकिन उन्होंने लक्ष्मण से ऐसा कुछ नहीं कहा ना ही उन्हें समझाने का प्रयास किया क्योंकि राम जानते थे कि लक्ष्मण किसी भी शर्त पर राम का पीछा छोड़ने वाले नहीं है यदि राम लक्ष्मण को बनवास आने के लिए मना भी करते तब भी लक्ष्मण वनवास में उनका पीछा करने वाले हैं।
भगवान राम के प्रिय लक्ष्मण
रावन से युद्ध के दौरान जब लक्ष्मण को मेघनाथ द्वारा शक्ति से लगभग मार ही दिया गया था, तब राम ने इतना विलाप किया था जितना कि उन्होंने अपने पूरे जीवन में कभी नहीं किया होगा। उसी समय राम ने रोते हुए यह बात स्वीकार की थी वह अयोध्या में बिना धन के रह सकते है, बिना सीता के रह सकते है लेकिन वह लक्ष्मण के बिना नहीं रह सकते।
इसीलिए राम का प्रेम लक्ष्मण के प्रति अद्वितीय था और लक्ष्मण राम को बहुत प्रिय थे। जब लक्ष्मण युद्ध के मैदान में घायल हो गए थे तो राम को कोई भी धीरज धराने वाला नहीं था यानी कि वह अपना विलाप रोक ही नहीं पा रहे थे। यह दर्शाता है कि राम और लक्ष्मण का प्रेम भाइचारे का प्रतीक है।
लक्ष्मण राम के सिर्फ भाई ही बल्कि सच्चे पक्षधर थे
यूँ तो लक्ष्मण ने अपना पूरा जीवन ही राम की सेवा में लगा दिया लेकिन उस समय लक्ष्मण की भूमिका देखने लायक थी जब राम पागलों की तरह सीता के वियोग में थे। तुलसीदास जी कहते है जब सीता चली गई तो राम को स्थिति एक छोटे बालक अबोध बालक की तरह हो गयी थी जो घंटों किसी प्रिय खिलौने के रोते हुए रहता था। ऐसे में लक्ष्मण छोटे होने के बावजूद भी राम के पिता की तरह या बड़े भाई की तरह राम को सांत्वना और शक्ति देते थे उन्हें समझाते थे। यहां तक कि राम को सकरात्मक होने में मदद करते थे।
जब राम एक पागल की तरह लगातार रोते थे वह जंगलों में ,सीता के ठिकाने के बारे में जानने के लिए जंगल में पेड़ों, फूलों, पौधों और जानवरों से पूछते रहे, और अक्सर उदास और तड़पते हुए जमीन पर बेहोश होकर गिर जाते थे। जबकि लक्ष्मण ने ऐसे समय में उन्हें खूब प्रेरणा देकर उत्साहित करने का काम किया। इसीलिए लक्ष्मण राम के सिर्फ भाई ही नहीं बल्कि सच्चे पक्षधर भी थे।
लक्ष्मण के गुरु
जो आपको सिखाता है वह आपका गुरू होता है। इसी तरह से राम लक्ष्मण के सिर्फ भाई ही नहीं, पिता और गुरु के समान भी थे। क्योंकि राम के गुरु विश्वामित्र ने राम को कई अस्त्रों और शास्त्रों में दीक्षित किया और राम वह राम के गुरु (गुरु) बन गए। राम ने बदले में यही सब शिक्षा लक्ष्मण को दी और लक्ष्मण के गुरु बन गए।
लक्ष्मण की मृत्यु
पृथ्वी पर अपने कर्तव्यों को पूरा करने के बाद राम ने विचार किया कि अब बैकुंठ को लौटना चाहिए। और थोड़ा विस्तार से सोच विचार करके राम ने यमराज को आमंत्रित करने का फैसला लिया। यमराज आया लेकिन यम ने राम के सामने एक शर्त रख दी।
यमराज ने कहा कि उनके बीच होने वाली बातचीत गोपनीय रहनी चाहिए। यमराज ने कहा उनकी बातचीत के दौरान जो कोई भी कमरे में प्रवेश करेगा उसकी मृत्यु हो जाएगी। यही कारण था कि राम ने लक्ष्मण को दरवाजे की रखवाली का जिम्मा सौंपा। ताकि कोई भी व्यक्ति कमरे में प्रवेश ना कर सके।
राम से यमराज की चर्चा के दौरान दुर्भाग्य से दुर्वासा ऋषि राम से मिलने के लिए उस कमरे की तरफ आ रहे तो तो लक्ष्मण ने उन्हें पहले प्यार और विनम्रता से रोका। लेकिन दुर्वासा ऋषि क्रोधित होने लगे और उनका क्रोध इतना ज्यादा हो गया कि वह अयोध्या को शाप देने वाले थे। यह बात सुनकर लक्ष्मण अयोध्या को शाप से बचाने के लिए सभा के बीच पहुंच गए जिससे उनकी मृत्यु हो गयी।
हालांकि, पौराणिक कथाओं के अनुसार यह बात पहले ही तय थी कि लक्ष्मण को राम से पहले ही बैकुंठ जाना था क्योंकि वह शेषनाग के अवतार थे और विष्णु के वैकुंठ लौटने से पहले उन्हें वापस लौटना पड़ा था।
भरत – सुदर्शन चक्र के अवतार
शत्रुघ्न की वीरता और अपने विरोधियों को परास्त करने की क्षमता के कारण यह विश्वास पैदा हुआ कि वह भगवान विष्णु के प्रतिष्ठित चक्र, सुदर्शन चक्र का सांसारिक अवतार थे।
सुदर्शन चक्र – दिव्य हथियार .सुदर्शन चक्र दैवीय सुरक्षा और न्याय का प्रतीक है। शत्रुघ्न के इस शक्तिशाली हथियार का अवतार एक निडर योद्धा के रूप में उनकी भूमिका को रेखांकित करता है जिसने धर्म की रक्षा की। हिंदू पौराणिक कथाओं में, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के पात्रों को दिव्य अवतारों का दर्जा दिया गया है, जिनमें से प्रत्येक महत्वपूर्ण विशेषताओं और प्रतीकों का प्रतिनिधित्व करते हैं। लक्ष्मण शेषनाग के अवतार के रूप में निष्ठा के प्रतीक हैं, भरत पांचजन्य शंख के अवतार के रूप में धार्मिकता के प्रतीक हैं, और शत्रुघ्न सुदर्शन चक्र के अवतार के रूप में एक निडर योद्धा के रूप में खड़े हैं। ये संबंध रामायण की महाकाव्य कहानी में गहराई और अर्थ जोड़ते हैं, जो हिंदू पौराणिक कथाओं के गहन प्रतीकवाद को उजागर करते हैं।
शत्रुघ्न – पांचजन्य शंख का अवतार
शत्रुघ्न का चरित्र अक्सर पांचजन्य नामक दिव्य शंख से जुड़ा होता है पांचजन्य शंख – धार्मिकता का प्रतीक पांचजन्य शंख हिंदू धर्म में धार्मिकता और धर्म का प्रतीक है। भरत के इन मूल्यों का अवतार इस पवित्र शंख के प्रतीकवाद के साथ संरेखित होता है, जो उनके पुण्य चरित्र को मजबूत करता है।
क्या थी लक्ष्मण रेखा
शास्त्र कहते हैं लक्ष्मण अभिमंत्रित रेखा बनाना जानते थे ● लक्ष्मण रेखा आप सभी जानते हैं पर इसका असली नाम शायद नहीं पता होगा। लक्ष्मण रेखा का नाम (सोमतिती विद्या है). यह भारत की प्राचीन विद्याओ में से जिसका अंतिम प्रयोग महाभारत युद्ध में हुआ था. चलिए जानते हैं अपने प्राचीन भारतीय विद्या को
क्या कहा जाता है लक्ष्मण रेखा के बारे में ● कुछ जगह ये तर्क दिया जाता है कि वास्तव में लक्ष्मण एक रेखा बनाकर गए थे. ये वेदों से अभिमंत्रित रेखा थी. माना जाता है कि ये वेदमंत्र एक कोड है, जो सोमना कृतिक यंत्र से जुड़ा है. पृथ्वी और बृहस्पति के मध्य कहीं अंतरिक्ष में वह केंद्र है जहां यंत्र को स्थित किया जाता है. वह यंत्र जल, वायु और अग्नि के परमाणुओं को अपने अंदर सोखता है. कोड को उल्टा कर देने पर एक खास प्रकार से अग्नि और विद्युत के परमाणुओं को वापस बाहर की तरफ धकेलता है. तब लेजर बीम जैसी किरणें उस रेखा से निकलने लगती हैं.पुराणों में ऋंगि ऋषि के हवाले से लिखा है कि लक्ष्मण इस विद्या के इतने जानकर हो गए कालांतर में
ये विद्या लक्ष्मण रेखा कहलाई जाने लगी. महर्षि दधीचि महर्षि शांडिल्य भी इस विद्या को जानते थे.

