Spiritual Mentor

दुर्गा

दुर्गा पूजा एक हिंदू त्योहार है जो देवी मां का उत्सव है और राक्षस महिषासुर पर योद्धा देवी दुर्गा की जीत है। यह त्यौहार ब्रह्मांड में नारी शक्ति को ‘शक्ति’ के रूप में दर्शाता है। यह बुराई पर अच्छाई का त्योहार है। दुर्गा पूजा भारत के सबसे महान त्योहारों में से एक है। हिंदुओं के लिए एक त्योहार होने के अलावा, यह परिवार और दोस्तों के पुनर्मिलन और सांस्कृतिक मूल्यों और रीति-रिवाजों के एक समारोह का भी समय है।

माया क्या है? माया की परिभाषा और उसके प्रकार?

माया क्या है? माया की परिभाषा और उसके प्रकार?   मैं अरु मोर तोर तैं माया। जेहिं बस कीन्हे जीव निकाया॥ गो गोचर जहँ लगि मन जाई। सो सब माया जानेहु भाई॥   मैं और मेरा, तू और तेरा- यही माया है, जिसने समस्त जीवों को वश में कर रखा है॥ इंद्रियों के विषयों को […]

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देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद का अर्थ है,

    देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य । प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य ॥१॥   देवी प्रपन्नर्ति मंत्र चंडी पाठः के अध्याय 11 से श्लोक 3 है। माँ अक्सर हमें शांति की प्रार्थना के रूप में इस मंत्र का प्रतिदिन जाप करने के लिए कहती हैं। “देवी प्रपन्नर्ति हरे” का अर्थ है, “हे देवी, आप अपनी शरण में आने वाले सभी लोगों के

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सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके मंत्र अर्थ सहित

ॐ सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके । शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते || ॐ सर्व मंगल मांगल्ये = सभी मंगलों में मंगलमयी शिवे = कल्याणकारी सर्व अर्थ साधिके = सभी मनोरथों को सिद्ध करने वाली शरण्ये = शरणागत वत्सला, शरण ग्रहण करने योग्य त्रयम्बके = तीन नेत्रों वाली गौरी = शिव पत्नी नारायणी = विष्णु की

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श्री दुर्गा चालीसा

श्री  दुर्गा चालीसा की महत्वपूर्ण जानकारी और  माँ दुर्गा चालीसा माँ दुर्गा चालीसा एक हिंदू धार्मिक प्रार्थना समान है, जो माँ दुर्गा को समर्पित है और यह प्राचीन है। हिंदू समुदाय में यह चालीसा पुरानी है और माँ दुर्गा के साहस-शक्ति को दर्शाती है। इस चालीसा की प्रत्येक चौपाई अलग-अलग अर्थ और महत्व रखती है।

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गुप्त सप्तशती

सात सौ मन्त्रों की ‘श्री दुर्गा सप्तशती, का पाठ करने से साधकों का जैसे कल्याण होता है, वैसा-ही कल्याणकारी इसका पाठ है। यह ‘गुप्त-सप्तशती’ प्रचुर मन्त्र-बीजों के होने से आत्म-कल्याणेछु साधकों के लिए अमोघ फल-प्रद है।इसके पाठ का क्रम इस प्रकार है। प्रारम्भ में ‘कुञ्जिका-स्तोत्र’, उसके बाद ‘गुप्त-सप्तशती’, तदन्तर ‘स्तवन‘ का पाठ करे।कुञ्जिका-स्तोत्र ।।पूर्व-पीठिका-ईश्वर उवाच।।

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